Short Story (Page 4)

The End of a Beautiful Dream

 

‘My whole face is burning,burning all over the body”Someone please save me’.
Sima Debi woke up, in the middle of the night with a sudden scream. Yes,this is the screaming of Nisha, who is lying next to Seema Devi. she got up in a hurry, and turned on the the room’s light, and said,  ‘everything is  ok now my child nothing to be afraid,see I am with you’.Nisha wakes up slowly and said ‘Mom again that nightmare,I don’t know when I will get rid from all of this’.

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The conch shell

The doctor said nothing can cure him.

I felt hopeless, couldn’t able to think what to do, he’s my only light I’m having after all I’ve lost in life. Then I got what I needed. Far away in the forest there’s a lake & under the lake a big conch shell is there which can cure any illness when the sound reaches the ears.

I remembered how my grandmother cured me when I was suffering once in my childhood.

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!! गुरू !!

सुबह-सुबह अखबार पढ़ने का शौक पुराना था। पुराना क्या, ज़रा गौर से गुजरी उम्र को टटोला जाये, तो अखबार से तो अपना स्कूल के दिनों का याराना चला आ रहा था। हाँ, तब ये अखबार पढ़ाई से ज्यादा और ढेरों करामाती-कारगुजारियों में मशगूल होता था। खैर, अब की उम्र में ये अखबार नाम का कागज़ी टुकड़ा केवल पढ़ने के ही काम आता है। पर उस दिन इसे पढ़ते-पढ़ते अचानक ही जाने कौन सी बुद्धि फिरी कि पढ़ने की बजाय,

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जिस्मानी रिश्ते का मोल

 

“मेरी बेटी यहाँ बैठेगी…” सोचते हुए ही सुचित्रा कमरे में दाखिल हुई थी।

कमरे का दरवाजा खोलते ही सुचित्रा के चेहरे पर असमंजस के भाव थे। फाइव स्टार होटल का यह एयर-कंडीशनर कमरा चार लोगों के दिनरात के ठहरने के हिसाब से डिजाइन किया गया था। दो जोड़ी बड़े-बड़े बेड, सोफे, कुर्सियां, मेज और इस तरह के इंतजामात कमरे में थे कि चार लोगों के लिए ठहरने के लिए बने कमरे में आराम से आठ-दस लोग बैठ सकते थे। अब जब इंतजाम मौजूद थे,

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ज़िन्दगी… बड़ी भूख…

अगर आपने काला-पानी की जेल का नाम सुना हो! अगर आपने वहाँ के हालातों में एक बार खुद को रखने की कोशिश की हो! अगर आपने सोचा हो, कैसे एक ही बर्तन से नहाना-धोना-शौच और फिर उसी बर्तन में ज़िंदगी को ज़िंदगी बनाकर जीने के लिए खाना…
तो फ़िर आप भूख को समझ सकते हैं!
आप रूह की भूख और प्यास को समझ सकते हैं!

वो भी ज़िन्दा था, पर केवल एक रूह की तरह। और फिर जैसे ही मौका मिला…

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ताज़ा बारिश

 

घर के अन्दर वैसे तो सबकुछ घरेलू ही होता है। फिर भी तरह-तरह के घर में दो-तीन तरह के माहौल हो जाते हैं… घरेलू, नॉन-घरेलू और कुछ घरेलू होते हुए भी बड़े नॉन-घरेलू। संजू और हेमा की शादी हुए अभी मुश्किल से छः महीने का वक़्त गुज़रा था। तो उनके बीच जो भी होता, घरेलू होते हुए भी बड़ा नॉन-घरेलू जैसा हो जाना बिल्कुल स्वाभाविक ही था।

अभी पिछली शाम ताज़ा-ताज़ा गिरी बारिश से तापमान एकाएक नीचे लुढ़क आया था। नये जोड़ों के लिए तो ये वक़्त ही था कि अपनी एक-दूसरे के सामने दिल खोलकर रख दें। मौका पाते ही संजू ने आखिर हेमा को छेड़ ही दिया-
“ठंड नहीं लगती क्या?”

संजू की आँखों में देखते ही हेमा के चेहरे पर शरारती हंसी खेल पड़ी। वो सब साफ-साफ समझ रही थी। जगह-जगह पर साड़ी के झीने ढकाव से बच-बच कर बदन के जो कुछेक हिस्से बीच से झाँक रहे थे,

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मेरा अबॉर्शन..

रोते-रोते लाल हो चुकी आँखों के आँसू पोंछते-पोंछते आखिरकार नलिन ने लैपटॉप ऑन कर लिया। वो चुप होने की कोशिश तो कर रहा था, पर दर्द इतना ज्यादा था कि की-बोर्ड पर दो-तीन बूँदों की धार बिखर ही गयी। काफ़ी देर से वो कोशिश कर रहा था कि कुछ करके एक बार आशिमा से उसकी बात हो जाये, पर न जाने ये कैसा गुस्सा था कि उसने तो मोबाइल के हर एक ऐप से नलिन को ब्लॉक कर दिया था। अब नलिन के पास बस एक ही तरीका बचा था कि अपने मन की हर बात,

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सीने के बटन

आज ही नेता जी जीवन का पहला युद्ध जीत आये थे!

अब इसे युद्ध न कहा जाये, तो भला क्या कहा जाये? कितने ही विरोधियों से तो लोहा लेना पड़ा था, न जाने कितनी गाड़ियां, कितने लश्कर, और कितना तो असलाहा भी हरकत में आया था और फिर रणनीति के तहत सारे जोड़-घटाने लगाकर कुर्सी हथिया ली गयी थी।

अब खुशी हाथ में थी तो उसका करामाती प्रदर्शन तो बिल्कुल जरूरी ही था। पार्टी-कार्यकर्ता नाम से जाने वाले चमचों,सारे चेलों-चपाटों ने नेता जी के बस एक ही इशारे पर मिलकर यह भव्य परिकल्पना गढ़ डाली थी। इलाके की मुख्य सड़क के सबसे भीड़-चाल वाले इलाके में तंबू गाड़ दिया गया था। बस अब नेताजी को अपने उद्गार जनता को परोसने थे।

नेताजी की फरमाइश पर उनकी तरफ से तो सारी तैयारियां उनके पिछलग्गुओं ने कर दी थी,

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पर्यावरण को बचाने… लोटा आज फिर  नहीं लौटा…

 

घर के भीतर भी लाइन लगानी पड़े, तब तो हालात समझाने की जरा भी ज़रूरत नहीं होनी चाहिए… … है न!

हालातों की हूक से निजात पाकर जैसे ही तशरीफ़ को एक आधार पर टिकाने का मौका हाथ लगा, मन मनचला हो पड़ा। अक्सर की तरह आज फिर हालात थे कि बदन तो भीतर के हर मन से सोच रहा था! अब मन लगा, तो उसकी मनमानी की कहानी तो बननी ही थी…

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जुर्म… हो गया…

“अरे वाह!”आइसक्रीम देखते ही बच्चे चिल्ला पड़े थे।
बच्चों की खुशी में धीर आज भी खुश था। पर उतना नहीं, क्योंकि वो अब खुद बच्चा नहीं था!

कल तक वो बड़े शौक से आइसक्रीम की ठिलिया चलाता था। जब कभी खुद से छोटी उम्र के बच्चे पास आते, वो बड़ा खुश हो जाता था। उसके कोई छोटे भाई-बहन नहीं थे। हर छोटे को करीब देखकर उसे महसूस होता, जैसे भगवान जी ने दो पल को उसके लिए कोई तोहफा भेज दिया हो। पर सब होते-होते अब वक्त बदल चुका था। आज वो बड़ा हो चुका था। उम्र में छोटों को देखकर उसे अब जलन होती थी। खुद के ठेले पर से जब वो उम्र में कहीं छोटे अमीर लड़कों को लड़कियों के लिए आइसक्रीम खरीदते देखता,

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