Short Story (Page 3)

व्यथा

सुबह से 50 फाइलें निबटाने के साथ सिर और गर्दन दोनों भारी हो चले थे। विकास ने हाथ से चाय का इशारा कर पूछा.. जाऊं मेडम ? मेने स्वीकृति में सर हिला दिया ।विकास की कुर्सी का खिसकना और मेरे चैम्बर का दरवाजा खुलना एक साथ हुआ।

सामने एक पेंसठ साल से अधिक के वृद्ध व्यक्ति खड़े थे,पेंट, शर्ट, मोटा सा हाथ का बुना स्वेटर , माथे पे वुलन का टोपी, गले मे स्कार्फ,

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जयप्रकाश

हमारे ऑफ़िस में एक होम गार्ड हे ….” जयप्रकाश “… भगवान जब दिमाग़ बाँट रहे थे तो वो पता नहीं कहाँ बेठे खेनी खा रहे थे… उनको किसी काम के लिए समझाना टेड़ी नहीं आंढ़ी- बाँकी सारी खीर हे । बोलते एसे हें की मुँह में फ़व्वारा लगा हो , बोलते कम हें थूकते ज़्यादा हें, ऊपर से उच्चरण माशाल्लाह !!! मुँह खुले ही खुले में सब बात कह देते हें । कुछ बोलो तो “हें मेंsssssडम!!!!

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नारी शक्ति

 

डेस्क पे सर रखे हुए “दिशा” एकटक दीवार को देखती थी, उठ के कभी दूसरी डेस्क तक जाना कभी वाशरूम का चक्कर लगाती थी। निधि ने उसकी परेशानी भांपते हुए हाथ के इशारे से ‘क्या हुआ?” पूछा…. आंखों में तैर आये आंसुओं को लगभग रोकते हुए दिशा वाशरूम में चली गयी।निधी उठ के पीछे -पीछे बात करने को गयी।

क्या हुआ दिशा डिलीवरी के बाद से आई हो तब से परेशान हो???बेबी ठीक है ना?

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In the world of stories

Aditi was a very hard-working girl. After her mother died, her father took care of her. After completing her college she took admission in ‘Creative writing course’. It was Saturday. Aditi’s class was closed due to the absence of teacher and so she was at home. She thought of reading a story of Rabindranath Tagore. She started reading “dena-paona”. After she completed reading the story she started making a portrait of Tagore. Like reading stories she also loved drawing and if was rabi thakur then she would forget everything and that day she did the same thing,

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तुम ही जानो, ये प्रेम-व्रेम…

“ये सब की सब, पूरी क्लास की लड़कियाँ भी न! जाने कैसे दिन भर स्कूल में मगज़ मारकर, फ़िर यहाँ से घर जाने के बाद जाने कैसे किचन में खुशी-खुशी न जाने क्या-क्या बनाती रहती हैं? मुझसे तो न… घर के दो काम भी सही से पूरे नहीं हो पाते। माँ, हर काम बोलने के बाद ताने मारती रहती है कि पता नहीं कब उसे घर में इस बेटी के होने का कोई सुख देखने को मिलेगा।”

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हीरा

हीरा के रिक़्शे पर आज उसका सबसे स्पेशल पैसेंजर था …उसका 5 साल का बेटा मंगल जिसे वो प्यार से चोखा बोलता था। हीरा भी यूपी-बिहार के लाखों लोगों की तरह अपना गाँव छोड़ दिल्ली आ बसा था।समय की मार ने हाथ मे रिक्शा पकड़ा दिया और हीरा और उसकी जिंदगी उसके पैरों की मार से चल पढी।

पिछले साल भर पैसे जमा कर उसने बेटे के स्कूल की फीस इकट्ठा की थी…पूरा 15 हज़ार रूपईया..स्कूल भी सरकारी नहीं अंग्रेजी मीडियम..

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माँ

“माँ”

विद्या का फौजी पति लगभग 11 साल पहले शहीद हो चुका था,और उसके पास छोड़ गया 4 साल का रघुआ बहुत अधिक गोरा होने के कारण प्यार से उसका नाम कलुआ रख दिया था।एकलौते बेटे के जाने के गम में बहुत जल्दी ही सास ससुर भी चल बसे।अब रह गई विद्या ,कलुआ और उनकी 5 बीघा ज़मीन, वो ज़मीन जिस पर ना जाने कितनों की गिद्द दृष्टी थी।और उनकी मुराद पूरी भी हो रही थी,

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Cotton candy

“Mom, I want those white cotton candies”, said Nina to her mom, looking at the sky.

“Where do you find cotton candies now? It’s almost lunch time now”, said Nina’s mom while cooking in the kitchen.

“I can see from window. It’s up there mom”, said Nina.

“What ?” said Nina’s mom.

Nina’s mother then went into the room and saw Nina was standing at the window and looking at the sky.

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The elephant

Jim was a little boy of six years. One day in the middle of the night he woke up from sleep. He saw a giant like figure was sleeping beside him and was snoring loudly. He thought must be an elephant came into his room. He loudly called out,” mr. elephant, mr. elephant”. That giant like figure next to Jim woke up and said,” what happen Jim? Where is elephant?

Jim said,” you can speak?”.

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वो बेशरम लड़की

वो बेशरम लड़की
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पहली बार उसे बेशरम तब बोला गया जब वह करीब 10 साल की थी. घर में किसी ने गाली दी थी. शायद बड़ी या छोटी दादी में से कोई थी. घर का माहौल ऐसा था कि वहां गाली खाना और गाली देना आम बात थी. तब उसे बेशरम का मतलब नहीं पता था. वो लड़कों के साथ लड़कों की तरह दिनभर उछलकूद करती थी. शायद ये बात दादी को ठीक नहीं लगी थी.

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