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स्तब्ध है हृदय
स्तब्ध है हृदय.. कुछ शूल चुभ रहें हैं.. कुछ तो हुआ है.. ये प्रश्न उठ रहे हैं… हाँ श्वेत वस्त्रधारियों पे.. कुछ दाग दिख रहे हैं.. कुछ तो किया है जो प्रश्न उठ रहे हैं..                         (1) स्तब्ध है हृदय.. कुछ प्रलाप सुन रहे हैं.. चहुँओर आज लोग इक विलाप कर रहे हैं.. हाँ कुछ तो हुआ है.. ये प्रश्न उठ रहे हैं.. बेईमानी के बाज़ार में.. फ़िर ईमान बिक रहे हैं.. तो कुछ तो हुआ है जो ये प्रश्न उठ रहे हैं..                        
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अपनों का एहसास महामारी में

✍🏻 अपनो का अहसास महामारी में✍🏻

मैं ऐसा बनावटी दुनिया में फंसा
आपनो को भूल दूसरो को चाहने लगा |

दूरी थी मां के कर निवाले से
दूरीया ही बन गई थी प्रथम आले से |

जिस जगह से उब गया था इस कदर
ना ही अपने प्रिय लगते मैं था दर-बदर |

घर मे पहले बोर होने लगाता था
मन अपनो को छोड़ परायेपन में खुश रहने लगाता था |

शहरी संस्कृति हावी हो गयी थी
अपनो की बाते कांटो सी हो गयी थी |

उनके पास बैठना भी बुरा लगता था
मेरा मन परायो को अपना बैठा था |

जब पापा की हर बात कांटो सी लगती थी
माँ का बुलाना बेहूदा हरकत लगती थी |

मै फोन की रहस्यमयी दुनिया में खोता गया
माँ –

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अहसास

1.उमड़ते बादल

बरसती बूंदें

और चलती हवाएं

तेरे होने की खूशबू का

अहसास करा जाती है

2.यूं तो हजारों शिकायतें हैं तुझसे

पर तेरा पर भर मुस्कुरा कर देखना

सब दूर कर देता है

3.बारिश की बूंदों सा है

प्यार मेरा

धरती में समा जाने पर भी

अपनी सौंधी खुशबू छोड़ जायेगा

4.तेरे अहसास के

झूलों तले

चलती है

सांसे मेरी

कभी फुर्सत मिले तो

सुनना धड़कनों में नाम तेरा

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