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अजनबी हूँ

अजनबी हूँ इस शहर मे

कोई तो अपना लो

प्यार ना दो भले एक पल

इस दर्द मे साथ निभा लो

उपकार होगा उनका जो

हमें अपने गले लगायेंगे

हम भी भगवान समझ

उन्हें ह्रदय मे बसायेंगे

अजनबी हूँ इस शहर मे

कोई तो अपना लो

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गांव

वह गांव में आज भी आनंद है, क्यों शहरों में प्रदूषण की काई छाई?

क्यों गांव जैसी हरियाली शहरों को ना भाई?

भोजन मिलता किसान से, पर शहरों में तो मल्टीनेशनल कंपनियां ही पाई।

क्यों शहर वालों ने सुविधा, और गांव वालों ने दर-दर की ठोकरें खाई?

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