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बरसात की वो पहली काली

मुरझाई  हुई पड़ी  है इक तजा गुलाब,

जैसे बरसात  की पहली  काली।

जो होठों पे कभी लाली खिला करती थी,

वो अब सफ़ेद  पड़ी  हुई  है।

जो आँखों की  गेहराईयों  के सामने,

फीके  पड़ते  थे  हज़ारो सागर की गहराई,

वो आँखें अब बंद पड़ी है,

उन आँखों मे बस छायी हुई  है एक बेजुबान दर्द ।

उमर कितनी  होगी उस  गुलाब की,

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बरसात का मौसम

कभी बरसात के मौसम में
कभी पतझड़ के मौसम में
उसी की याद आती है
हर लम्हा के मौसम में

वो इस कदर मुरत है मोहब्बत की
छा जाती है फूलो में बंसत के मौसम सी

मुझे इंतजार था ग्रीष्म में
पानी बनके मिलने आओगी
वर्षा का है इंतजार
नवनिर्माण कराओगी

मुझे जीना है तेरे साथ
तु साथ दे देना
करेगे प्यार ऐसा
तु कल दे देना

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