Author: Ashish Anand Arya "Ichchhit" (Page 3)

आखिर कब तक धैर्य : शक्ति-पुँज & आचार्य अदग (PART 5)
  • By Ashish Anand Arya "Ichchhit"
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Part 1: https://rentreadbuy.com/index.php/2020/05/30/shakti-punj-acharya-adag

Part 2: https://rentreadbuy.com/index.php/2020/06/02/shakti-punj-acharya-adag2

Part 3: https://rentreadbuy.com/index.php/2020/06/06/shakti-punj-aur-acharya-adag-part3

Part 4: https://rentreadbuy.com/index.php/2020/06/07/shakti-punj-and-acharya-adag-4

पिछले खण्ड से आगे… PART-5   :-

उस अजनबी व्यक्ति के सामने इस वक़्त दो लोग खड़े थे। दोनों ही व्यक्ति ऐसे थे, जिनके ताकतवर प्रहारों के कुठाराघाती असर को इस अजनबी ने कुछ घड़ी पहले ही तो महसूस किया था। सामने खड़े इन दोनों लोगों को देखते ही वो एकदम से सहम गया। भीतर पनपे इस यकायक डर के असर से हड़बड़ा कर वो तुरन्त ही अपनी जगह से उठा और दौड़कर इधर-उधर भागने लगा। वो छिपने के लिये कोई कोना तलाशने की कोशिश कर रहा था। युवक की उस घबराहट को देख आचार्य चेहरे पर तैरती बड़ी शान्ति के भाव के साथ गम्भीर स्वर में बोले-
‘‘यहाँ तुम्हें किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं।”

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शक्ति-पुँज & आचार्य अदग : PART-4

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पिछले खण्ड से आगे…
गुजरती समय की घड़ियों के साथ युवा होते वश्य की दक्षता और निपुणता को देख आचार्य को यह आभास स्पष्टहोने लगा था कि वो जल्द ही उसे उत्तरदायित्व की कोई बहुत बड़ी सौगात सौंपने जा रहे हैं। पर अभी तक उन्होंने कभी भी कुछ भी स्पष्ट रूप से कहा नहीं था। इधर शिक्षा और दीक्षा का प्रक्रम यथावत् वश्य को लगातार सक्षम करता जा रहा था कि एक दिन यकायक ही बहुत अकस्मात् परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गयीं।

उस दिन जब आचार्य प्रतिदिन की तरह प्रातः स्नान के लिए कुटिया के निकट बहने वाली नदी की ओर जा रहे थे,

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!! शक्ति पुँज & आचार्य अदग !! (Part 3)

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पिछले खण्ड से आगे… PART-3 :-

आचार्य की बात पूरी हो चुकी थी। उन्होंने अपना आदेश सुना दिया था। फिर भी जमीन पर लेटे हुए उठने की कोशिश करते वश्य के होठ बड़े हौले से हिले। वह संभवतः कुछ बोलना चाहता था। पर जिस जोरदार तमाचे की वजह से वो नीचे जमीन पर गिर पड़ा था,

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Birthday Wishes to All Beautiful Ladies

जन्मदिन हो आज मुबारक
दिन ये बारंबार मुबारक!

दुआएं देता परिवार मुबारक
सदा यही उपहार मुबारक!

ढेर-ढेर खुशियां जीवन में आएं
कहता दिन ये आज मुबारक!

सालों-साल सदा हो चेहरा मुस्कान
हर दिन इक नयी मुस्कान मुबारक!

पति बनें रहें सदा परमेश्वर दिल से
सास-ससुर से ढेरों आशीर्वाद मुबारक!

जीवन के रिश्तों की मोहकता आप..
रचो यूँ ही जीवन-त्योहार मुबारक!

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वोट की चोट का दर्द

मूल रूप से किसी भी देश का विकास और उसकी गतिशीलता देश में उपलब्ध संसाधन और उनके संदोहन पर निर्भर करते हैं। भारतवर्ष के भीतर यह गतिविधि प्राथमिक तौर पर भारतीय सरकार के हिस्से आती है।

पारिस्थितिकी की दृष्टि से भारतवर्ष विकास के मानकों पर खरा उतरने के लिए एक अद्वितीय देश है। परंतु भारत की व्यापक रूप से विश्व स्तर पर जो स्थिति है, उसका उत्तरदायित्व किसके सर मढ़ा जाना चाहिए, भारतीय होने के नाते हम बेहतर ढंग से बखान सकते हैं।

मेरी व्यक्तिगत विचारधारा में देश की सबसे ज्वलन्त समस्या देश की जनसंख्या ही इकलौती समस्या है,

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!! शक्ति पुँज & आचार्य अदग !! (Part 2)

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पिछले खण्ड से आगे… PART-2 :

आचार्य अदग के हिसाब से उनकी उम्र बूढ़ा कहे जाने वाले पड़ाव पर पहुँच चुकी थी। अब तक ब्रह्मचर्य-जीवन का पालन करने वाले आचार्य अदग के नज़दीक कोई भी ऐसा इंसान न था, जिससे वो अपने मन की बातें कह सकें। मन के अन्दर ही अन्दर उथल-पुथल मचाते विचारों के इस लगातार दबाव ने जीवन के आरम्भ से ही शान्तिप्रिय रहे आचार्य के व्यवहार को अब सहसा ही बहुत कर्कश बना दिया था। उस कर्कशता की वजह से ही अब लोग उसके करीब आने से भी घबराने लगे थे। परन्तु उस आचार्य मन के भीतर उस गुस्सैल मनोदशा के बावजूद कुछ और ही ध्येय थे।

इस समय आचार्य अदग के विचार बहुत दूर की बात सोच रहे थे। जीवन के इस अधेड़ दर्शक ने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि वो इसी कठोर स्वभाव के साथ शेष जीवन का यापन करेगा। उस कठोर अवस्था में जो कोई भी जिज्ञासु अपने प्रयासों से उन्हें सन्तुष्ट करने का प्रयास करने जा रहा था,

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!! शक्ति-पुँज & आचार्य अदग !!

!! शक्ति-पुँज & आचार्य अदग !!

जीवन, वह एक बड़ा सत्य है, जिसने पृथ्वी को आज तक इतने विशाल ब्रह्मांड के हजारों लाखों ग्रहों के बीच बिल्कुल अलग ही स्थापित करके रखा है। पृथ्वी पर जीवन के न जाने कितने-कितने प्रकार हैं। पेड़-पौधे, कवक, पशु-पक्षी, मछली, उभयचर, कीटाणु, विषाणु, कोशिका और इस तरह से एक-एक जोड़ते-जोड़ते और भी न जाने क्या-क्या! पृथ्वी पर मौजूद जीवन के इन विभिन्न रूप-रंगों में से ही एक,

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बस खयाल रखना अपना

तन मिट्टी हुआ
दिल चिट्ठी हुआ
कैसे अब लौट के हो जाना?

तुम ढेर बहुत हो
यादों में,
तुम पल-पल
दिल की साँसों में,
पर साँसों को इन
अब मुनासिब कैसे हो
तुम तक पहुँचाना?

दरवाजे पर
ये टिकी निगाहें
सवालों में
बस बहती जायें
कि किसकी गोद में खेलेगा
अब कान्हा?
किसके काँधे चढ़
मुनिया बोलेगी अब पापा?

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माता-पिता के चरणों में…

सेवा का दूजा नाम नहीं
भगवान मेरे राम-रहीम!
पूजा मैं इंसानी करता हूँ
माँ-बाबा वरदान.. असीम!

बेहतर दूजा सम्मान नहीं
मात-पितु आशीष अभीष्ट!

आज ढलते नगमे गहरे हैं
जीवन न कल-कल ठहरे है
नियम सब बड़े इकहरे हैं
सफल आशीष के पहरे हैं!

बेहतर दूजा सम्मान नहीं
मात-पितु आशीष अभीष्ट!

मनुज-धर्म सनातन मिहिर
भक्ति-भाव मिटाये तिमिर
चरण-वंदना सर्वोपरि सशक्त
बैकुण्ठ इनमें बसे गहरे हैं!

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ऐसे हुए हम…

कुछ कदम और…
तुम्हें कुछ और पाना है,
कि ये ज़िंदगी तो…
बस तुम्हें करीब
और करीब लाने का बहाना है !!

कि ये जो मिली हैं साँसे
तो भरते जा रहे हैं दम उनका…
कि हर दम का
सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही मकसद…
कि तुमको हर साँस मे गहरा…
और गहरा बसाना है !!

नहीं इस ज़िंदगी का
अब कोई और फसाना है,

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